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त्वे अ॑सु॒र्यं१॒॑ वस॑वो॒ न्यृ॑ण्व॒न्क्रतुं॒ हि ते॑ मित्रमहो जु॒षन्त॑। त्वं दस्यूँ॒रोक॑सो अग्न आज उ॒रु ज्योति॑र्ज॒नय॒न्नार्या॑य ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tve asuryaṁ vasavo ny ṛṇvan kratuṁ hi te mitramaho juṣanta | tvaṁ dasyūm̐r okaso agna āja uru jyotir janayann āryāya ||

पद पाठ

त्वे इति॑। अ॒सु॒र्य॑म्। वस॑वः। नि। ऋ॒ण्व॒न्। क्रतु॑म्। हि। ते॒। मि॒त्र॒ऽम॒हः॒। जु॒षन्त॑। त्वम्। दस्यू॑न्। ओक॑सः। अ॒ग्ने॒। आ॒जः॒। उ॒रु। ज्योतिः॑। ज॒नय॑न्। आर्या॑य ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:5» मन्त्र:6 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:8» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मित्रमहः) मित्रों में बड़े (अग्ने) अग्नि के तुल्य सब दोषों के नाशक ! जिस (त्वे) आप परमात्मा में (वसवः) पृथिवी आदि आठ वसु (असुर्यम्) मेघ के सम्बन्धी (क्रतुम्) कर्म को (नि, ऋण्वन्) निरन्तर प्रसिद्ध करते हैं तथा (जुषन्त) सेवते हैं जो (त्वम्) आप (आर्याय) सज्जन मनुष्य के लिये (उरु) अधिक (ज्योतिः) प्रकाश को (जनयन्) प्रकट करते हुए (ओकसः) घर से (दस्यून्) दुष्ट कर्म करनेवालों को (आजः) प्राप्त करते हैं उन (ते) आपका (हि) ही निरन्तर हम लोग ध्यान करें ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! योगीजन जिस परमेश्वर में स्थिर होकर इष्ट काम को सिद्ध करते हैं, उसी परमात्मा के ध्यान से सब कामनाओं को तुम लोग भी प्राप्त होओ ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृशोऽस्तीत्याह ॥

अन्वय:

हे मित्रमहोऽग्ने ! यस्मिँस्त्वे वसवोऽसुर्यं क्रतुं न्यृण्वञ्जुषन्तो यस्त्वमार्यायोरु ज्योतिर्जनयन्नोकसो दस्यूनाज तस्य ते हि वयं ध्यायेम ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वे) त्वयि परमात्मनि (असुर्यम्) असुरस्य मेघस्येदं स्वकीयं स्वरूपम् (वसवः) पृथिव्यादयः (नि) नित्यम् (ऋण्वन्) प्रसाध्नुवन्ति (क्रतुम्) क्रियाम् (हि) खलु (ते) तव (मित्रमहः) यो मित्रेषु महाँस्तत्सम्बुद्धौ (जुषन्त) सेवन्ते (त्वम्) (दस्यून्) दुष्टकर्मकारकान् (ओकसः) गृहात् (अग्ने) वह्निवत्सर्वदोषप्रणाशकः (आजः) प्रापयसि (उरु) बहु (ज्योतिः) प्रकाशम् (जनयन्) प्रकटयन् (आर्याय) सज्जनाय मनुष्याय ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! योगिनः यस्मिन् परमेश्वरे स्थिरा भूत्वेष्टं कामं साध्नुवन्ति तस्यैव ध्यानेन सर्वान् कामान् यूयमपि प्राप्नुत ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! योगी लोक ज्या परमेश्वरात स्थिर होऊन इष्ट काम सिद्ध करतात त्याच परमात्म्याच्या ध्यानाने तुम्ही सर्व कामना पूर्ण कराव्यात. ॥ ६ ॥